BA Semester-5 Paper-1 Psychology - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2789
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 मनोविज्ञान - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 1

मानव विकास : परिचय

(Human Development : Introduction)

प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. मानव विकास से आप क्या समझते हैं ?
2. मानव विकास को परिभाषित कीजिए ।
3. मानव विकास का अध्ययन क्यों आवश्यक है ?
4. मानव विकास की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए ।
5. विकास क्या है ?

उत्तर -

मानव विकास की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
(Historical Background of Human Development)

मानव विकास की अवधारणा विकासात्मक मनोविज्ञान की अत्यन्त यथार्थवादी एवं आधुनिक विचारों को पोषित करने वाली अवधारणा है जिसके कारण मानव जन्म से पूर्व गर्भाधान से लेकर जन्म के पश्चात् एवं सम्पूर्ण मानव जीवन के विकास का अध्ययन करना सम्भव हुआ है। इसके अन्तर्गत मानव के जैविक, शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, सामाजिक संज्ञानात्मक, संवेगात्मक आदि विकास का क्रमबद्ध एवं विस्तृत अध्ययन किया जाता है। यद्यपि मानव विकास के सम्बन्ध में उच्चस्तरीय अनुसंधान तथा सैद्धान्तिक ज्ञान आधुनिक स्थिति बीसवीं सदी की देन है, फिर भी गहन अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि मानव विकास के अध्ययन की जड़ें बहुत गहरी एवं प्राचीनतम है। इस सन्दर्भ में प्लेटो ने अत्यन्त सूक्ष्म एवं विलक्षण तर्क एवं प्रेक्षण प्रस्तुत किये हैं। उनका मत था कि बालक की क्षमताओं एवं योग्यताओं में जन्मजात व्यक्तिगत भेद अत्यन्त व्यापक स्तर पर दिखाई देते हैं अतः प्रत्येक बालक को उसकी अभिक्षमता के अनुसार ही प्रशिक्षण एवं मार्गदर्शन दिया जाना चाहिये अर्थात् उस बालक को उसी कार्य या सेवा हेतु प्रशिक्षित किया जाना चाहिये जिसको करने की उसमें स्वाभाविक क्षमता विद्यमान हो। इस परिप्रेक्ष्य में प्लेटो को अभिक्षमता परीक्षण के क्षेत्र में पथ प्रदर्शक की संज्ञा दी जा सकती है।

मानव विकास के सम्बन्ध में प्लेटों के अतिरिक्त कुछ दार्शनिक एवं अन्य विचारकों के विचार भी अत्यन्त मौलिक एवं विचारणीय हैं। इन्होंने अपने व्यक्तिगत सूक्ष्म अनुभवों के आधार पर बालकों की स्वाभाविक प्रवृत्तियों का वर्णन करते हुए बालकों को रचनात्मक दिशा में प्रशिक्षित करने पर जोर दिया है । इस सम्बन्ध में सत्रहवीं शताब्दी के प्रसिद्ध दार्शनिक जॉन लॉक ने बालकों के जीवन के प्रारम्भिक वर्षों को नवीन आदतों के निर्माण के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना था। एक अन्य विचारक रूसो ने भी बालकों को उनकी जन्मजात अभिक्षमता, योग्यता एवं आवश्यकता के अनुसार उचित शिक्षा देने पर जोर दिया है। रूसो (Rouseau) ने बाल विकास की विभिन्न अवस्थाओं का उल्लेख करते

हुए बताया है कि जन्म से कोई बालक अच्छा या बुरा नहीं होता है बल्कि उसे जन्म के पश्चात् जैसा वातावरण मिलता है, वह उसी के अनुरूप बन जाता है। पेस्टालॉजी (Pestalogy) ने बालकों के विकास के सम्बन्ध में रूसो के विचारों में संशोधन करते हुए बालक के विकास में पर्यावरण से अधिक महत्वपूर्ण उसके परिवार के सदस्यों को माना है तथा रूसो की भाँति बाल विकास में उसकी स्वाभाविक क्षमताओं के सहज, स्वभाविक एवं क्रमिक विकास पर जोर दिया है।

इसके अतिरिक्त हरबर्ट, फ्रोबेल, स्पेन्सर, जॉन डेवी, मैडम मॉण्टेसरी, डाल्टन, नन एवं रसेल आदि दार्शनिकों एवं शिक्षाशास्त्रियों ने भी बाल विकास के सम्बन्ध में अलग-अलग और महत्वपूर्ण सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक विचार प्रस्तुत किये हैं । उनके विचारों ने बालकों की शिक्षा के कार्यक्रमोंको अत्यधिक प्रभावित किया है। इसके फलस्वरूप बीसवीं सदी के आरम्भ में जान वाटसन (John Watson), फ्रायड (Frued), हॅल (Hull), बिने ( Binnet) आदि मनोवैज्ञानिकों ने मानव विकास सम्बन्धी अनेक महत्वपूर्ण विचारों का प्रतिपादन किया। 1950 एवं उसके बाद मानव विकास के सम्बन्ध में अनेक महत्वपूर्ण अनुसंधान किये गये और विकासात्मक व्यवहार के आधारभूत कारणों की खोज के प्रयास किये गये। जिसके फलस्वरूप बाल्यावस्था को मानव विकास की आधारशिला मानते हुए इसे सर्वाधिक महत्व दिया गया। आधुनिक युग में मानव विकास का विशिष्ट स्थान उसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के कारण ही सम्भव हो सका है।

मानव विकास का अर्थ एवं परिभाषायें
(Meaning and Definition of Human Develpment)

मानव विकास का सामान्य अर्थ मनुष्य के उस विकास से लगाया जाता है जिसमें मनुष्य उपयुक्त वातावरण पाकर अपनी आनुवंशिक एवं जन्मजात योग्यताओं में वृद्धि करता है । अतः यह स्पष्ट है कि मानवीय सम्भावनाओं का विकास ही मानव विकास है । मानव विकास को भिन्न-भिन्न मनोवैज्ञानिकों ने विभिन्न रूपों में परिभाषित किया है जिसमें से कुछ प्रमुख परिभाषायें निम्नलिखित हैं-

जे. बी. वाटसन के अनुसार - "मनुष्य का वैज्ञानिक अध्ययन ही मानव विकास की आधारशिला है।'

डार्विन के अनुसार - "मानव एवं उसकी प्रवृत्ति के विषय में वैज्ञानिक ढंग से सूचनायें प्राप्त करने का मुख्य स्रोत बालक है।'

आर. एस. वुडवर्थ के अनुसार - "मानव विकास के अध्ययन के अन्तर्गत व्यक्ति के व्यवहार द्वारा उत्तेजनाओं को दी गयी अपनी क्रियाओं एवं प्रतिक्रियाओं का योग सम्मिलित है।'

क्रो एवं क्रो के अनुसार - 'बालक की भ्रूणावस्था से प्रारम्भ होकर मृत्युपर्यन्त विकास का अध्ययन ही मानव विकास है ।"

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि मानव विकास के अन्तर्गत किसी व्यक्ति के गर्भ में प्रवेश से लेकर उसके जन्म, बाल्यावस्था का विकास एवं जीवनपर्यन्त विकास का अध्ययन किया जाता है जो उसकी मृत्यु तक चलता रहता है । इसके अन्तर्गत विभिन्न उद्दीपकों के प्रति की गयी प्रतिक्रियाओं एवं क्रियाओं के योग का अध्ययन किया जाता है।

मानव विकास के अध्ययन की आवश्यकता
(Need of the Study of the Human Development)

मानव विकास के अन्तर्गत मानव जीवन की सम्पूर्ण अवधि के विकास का अध्ययन किया जाता है। इसमें किसी व्यक्ति के गर्भ में प्रवेश से लेकर उसकी मृत्यु तक की सभी क्रियाओं, प्रतिक्रियाओं एवं व्यवहार के विकास का अध्ययन किया जाता है। इसके अध्ययन का महत्व एवं उपयोगिता निम्नलिखित है-

1. मानव विकास, मानव मनोविज्ञान के ज्ञान के लिये वातावरण की व्यक्तिगत समझ में वृद्धि करता है या यह कहा जाय कि उसे ऊपर उठाता है तथा समाज में उन्नति के अवसर के रूप में कार्य करता है।

2. व्यवहार के विकास का ज्ञान नवयुवकों तथा बालकों को प्रथमतः समाज के द्वारा निर्धारित. लक्ष्य एवं उद्देश्य तक पहुँचने में सहायता करता है तथा बाद में युवकों द्वारा इन लक्ष्यों तथा उद्देश्यों में आंशिक रूपान्तरण करने में सहायता करता है।

3. मानव विकास के अध्ययन के द्वारा मानव जाति की परिस्थितियों में उन्नति लायी जा सकती है जो समाज में व्याप्त अन्याय तथा असमानता को कम करने में सहायक हो सकती है। विकासशील व्यक्ति पर निर्धनता, पूर्वाग्रहों तथा अनिभिज्ञता का प्रभाव क्या होता है यह जानने के लिए मानव विकास का ज्ञान हमारी सहायता करता है तथा सामाजिक जीवन के दृष्टिकोण में परिवर्तन करके प्रभावशाली उन्नति की जा सकती है।

4. आधुनिक मानवता अपनी स्वयं की पहचान तथा प्रयोजन के साथ गहराई से जुड़ी है अतः इसे मानवीय व्यवहार के कारण तथा उद्देश्य के लिए खोजना आवश्यक है। मानव व्यवहार उसके जन्म समय ही निश्चित हो जाता है जो परिपक्वता के साथ मोड़ा या बदला नहीं जा सकता है या यह व्यवहार कि तना तथा किस दिशा में परिवर्तित किया जा सकता है। मानव विकास का ज्ञान यह जानने में हमारी सहायता करता है।

5. व्यवहार के सिद्धान्तों का ज्ञान मनुष्यों द्वारा इच्छित उद्देश्यों को सफलतापूर्वक प्राप्त करने के लिए आधारभूत आवश्यकता है। यदि मनुष्य को समाज में शान्तिपूर्वक रहना है तथा लक्ष्यों को प्राप्त करते रहना है तो मनुष्य की प्रेरणाओं और आवश्यकताओं को समझना आवश्यक है। मानव विकास का अध्ययन इन्हीं प्रेरणाओं एवं आवश्यकताओं को समझने में सहायता करता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- विकास सम्प्रत्यय की व्याख्या कीजिए तथा इसके मुख्य नियमों को समझाइए।
  3. प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में अनुदैर्ध्य उपागम का वर्णन कीजिए तथा इसकी उपयोगिता व सीमायें बताइये।
  4. प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में प्रतिनिध्यात्मक उपागम का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  5. प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में निरीक्षण विधि का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  6. प्रश्न- व्यक्तित्व इतिहास विधि के गुण व सीमाओं को लिखिए।
  7. प्रश्न- मानव विकास में मनोविज्ञान की भूमिका की विवेचना कीजिए।
  8. प्रश्न- मानव विकास क्या है?
  9. प्रश्न- मानव विकास की विभिन्न अवस्थाएँ बताइये।
  10. प्रश्न- मानव विकास को प्रभावित करने वाले तत्वों का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- मानव विकास के अध्ययन की व्यक्ति इतिहास विधि का वर्णन कीजिए
  12. प्रश्न- विकासात्मक अध्ययनों में वैयक्तिक अध्ययन विधि के महत्व पर प्रकाश डालिए?
  13. प्रश्न- चरित्र-लेखन विधि (Biographic method) पर प्रकाश डालिए ।
  14. प्रश्न- मानव विकास के सम्बन्ध में सीक्वेंशियल उपागम की व्याख्या कीजिए ।
  15. प्रश्न- प्रारम्भिक बाल्यावस्था के विकासात्मक संकृत्य पर टिप्पणी लिखिये।
  16. प्रश्न- गर्भकालीन विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-सी है ? समझाइए ।
  17. प्रश्न- गर्भकालीन विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन-से है। विस्तार में समझाइए।
  18. प्रश्न- नवजात शिशु अथवा 'नियोनेट' की संवेदनशीलता का उल्लेख कीजिए।
  19. प्रश्न- क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते है ? क्रियात्मक विकास का महत्व बताइये ।
  20. प्रश्न- क्रियात्मक विकास की विशेषताओं पर टिप्पणी कीजिए।
  21. प्रश्न- क्रियात्मक विकास का अर्थ एवं बालक के जीवन में इसका महत्व बताइये ।
  22. प्रश्न- संक्षेप में बताइये क्रियात्मक विकास का जीवन में क्या महत्व है ?
  23. प्रश्न- क्रियात्मक विकास को प्रभावित करने वाले तत्व कौन-कौन से है ?
  24. प्रश्न- क्रियात्मक विकास को परिभाषित कीजिए।
  25. प्रश्न- प्रसवपूर्व देखभाल के क्या उद्देश्य हैं ?
  26. प्रश्न- प्रसवपूर्व विकास क्यों महत्वपूर्ण है ?
  27. प्रश्न- प्रसवपूर्व विकास को प्रभावित करने वाले कारक कौन से हैं ?
  28. प्रश्न- प्रसवपूर्व देखभाल की कमी का क्या कारण हो सकता है ?
  29. प्रश्न- प्रसवपूर्ण देखभाल बच्चे के पूर्ण अवधि तक पहुँचने के परिणाम को कैसे प्रभावित करती है ?
  30. प्रश्न- प्रसवपूर्ण जाँच के क्या लाभ हैं ?
  31. प्रश्न- विकास को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन हैं ?
  32. प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
  33. प्रश्न- शैशवावस्था में (0 से 2 वर्ष तक) शारीरिक विकास एवं क्रियात्मक विकास के मध्य अन्तर्सम्बन्धों की चर्चा कीजिए।
  34. प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- शैशवावस्था में बालक में सामाजिक विकास किस प्रकार होता है?
  36. प्रश्न- शिशु के भाषा विकास की विभिन्न अवस्थाओं की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
  37. प्रश्न- शैशवावस्था क्या है?
  38. प्रश्न- शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास क्या है?
  39. प्रश्न- शैशवावस्था की विशेषताएँ क्या हैं?
  40. प्रश्न- शिशुकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है?
  41. प्रश्न- शैशवावस्था में सामाजिक विकास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो।
  42. प्रश्न- सामाजिक विकास से आप क्या समझते है ?
  43. प्रश्न- सामाजिक विकास की अवस्थाएँ कौन-कौन सी हैं ?
  44. प्रश्न- संवेग क्या है? बालकों के संवेगों का महत्व बताइये ।
  45. प्रश्न- बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
  46. प्रश्न- बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं? समझाइये |
  47. प्रश्न- संवेगात्मक विकास को समझाइए ।
  48. प्रश्न- बाल्यावस्था के कुछ प्रमुख संवेगों का वर्णन कीजिए।
  49. प्रश्न- बालकों के जीवन में नैतिक विकास का महत्व क्या है? समझाइये |
  50. प्रश्न- नैतिक विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन-से हैं? विस्तार पूर्वक समझाइये?
  51. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  52. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास क्या है? बाल्यावस्था में संज्ञानात्मक विकास किस प्रकार होता है?
  53. प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है?
  54. प्रश्न- बाल्यावस्था की विशेषताएं बताइयें ।
  55. प्रश्न- बाल्यकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है?
  56. प्रश्न- सामाजिक विकास की विशेषताएँ बताइये।
  57. प्रश्न- संवेगात्मक विकास क्या है?
  58. प्रश्न- संवेग की क्या विशेषताएँ होती है?
  59. प्रश्न- बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास की विशेषताएँ क्या है?
  60. प्रश्न- कोहलबर्ग के नैतिक सिद्धान्त की आलोचना कीजिये।
  61. प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में बच्चे अपने क्रोध का प्रदर्शन किस प्रकार करते हैं?
  62. प्रश्न- बालक के संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते हैं?
  63. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की विशेषताएँ क्या हैं?
  64. प्रश्न- किशोरावस्था की परिभाषा देते हुये उसकी अवस्थाएँ लिखिए।
  65. प्रश्न- किशोरावस्था में यौन शिक्षा पर एक निबन्ध लिखिये।
  66. प्रश्न- किशोरावस्था की प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश डालिये।
  67. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते हैं? किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास किस प्रकार होता है एवं किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों का उल्लेख कीजिए?
  68. प्रश्न- किशोरावस्था में संवेगात्मक विकास का वर्णन कीजिए।
  69. प्रश्न- नैतिक विकास से आप क्या समझते हैं? किशोरावस्था के दौरान नैतिक विकास की विवेचना कीजिए।
  70. प्रश्न- किशोरवस्था में पहचान विकास से आप क्या समझते हैं?
  71. प्रश्न- किशोरावस्था को तनाव या तूफान की अवस्था क्यों कहा गया है?
  72. प्रश्न- अनुशासन युवाओं के लिए क्यों आवश्यक होता है?
  73. प्रश्न- किशोरावस्था से क्या आशय है?
  74. प्रश्न- किशोरावस्था में परिवर्तन से सम्बन्धित सिद्धान्त कौन-से हैं?
  75. प्रश्न- किशोरावस्था की प्रमुख सामाजिक समस्याएँ लिखिए।
  76. प्रश्न- आत्म विकास में भूमिका अर्जन की क्या भूमिका है?
  77. प्रश्न- स्व-विकास की कोई दो विधियाँ लिखिए।
  78. प्रश्न- किशोरावस्था में पहचान विकास क्या हैं?
  79. प्रश्न- किशोरावस्था पहचान विकास के लिए एक महत्वपूर्ण समय क्यों है ?
  80. प्रश्न- पहचान विकास इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
  81. प्रश्न- एक किशोर के लिए संज्ञानात्मक विकास का क्या महत्व है?
  82. प्रश्न- प्रौढ़ावस्था से आप क्या समझते हैं? प्रौढ़ावस्था में विकासात्मक कार्यों का वर्णन कीजिए।
  83. प्रश्न- वैवाहिक समायोजन से क्या तात्पर्य है ? विवाह के पश्चात् स्त्री एवं पुरुष को कौन-कौन से मुख्य समायोजन करने पड़ते हैं ?
  84. प्रश्न- एक वयस्क के कैरियर उपलब्धि की प्रक्रिया और इसमें शामिल विभिन्न समायोजन को किस प्रकार व्याख्यायित किया जा सकता है?
  85. प्रश्न- जीवन शैली क्या है? एक वयस्क की जीवन शैली की विविधताओं का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- 'अभिभावकत्व' से क्या आशय है?
  87. प्रश्न- अन्तरपीढ़ी सम्बन्ध क्या है?
  88. प्रश्न- विविधता क्या है ?
  89. प्रश्न- स्वास्थ्य मनोविज्ञान में जीवन शैली क्या है?
  90. प्रश्न- लाइफस्टाइल साइकोलॉजी क्या है ?
  91. प्रश्न- कैरियर नियोजन से आप क्या समझते हैं?
  92. प्रश्न- युवावस्था का मतलब क्या है?
  93. प्रश्न- कैरियर विकास से क्या ताप्पर्य है ?
  94. प्रश्न- मध्यावस्था से आपका क्या अभिप्राय है ? इसकी विभिन्न विशेषताएँ बताइए।
  95. प्रश्न- रजोनिवृत्ति क्या है ? इसका स्वास्थ्य पर प्रभाव एवं बीमारियों के संबंध में व्याख्या कीजिए।
  96. प्रश्न- मध्य वयस्कता के दौरान होने बाले संज्ञानात्मक विकास को किस प्रकार परिभाषित करेंगे?
  97. प्रश्न- मध्यावस्था से क्या तात्पर्य है ? मध्यावस्था में व्यवसायिक समायोजन को प्रभावित करने वाले कारकों पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- मिडलाइफ क्राइसिस क्या है ? इसके विभिन्न लक्षणों की व्याख्या कीजिए।
  99. प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था में स्वास्थ्य पर टिप्पणी लिखिए।
  100. प्रश्न- स्वास्थ्य के सामान्य नियम बताइये ।
  101. प्रश्न- मध्य वयस्कता के कारक क्या हैं ?
  102. प्रश्न- मध्य वयस्कता के दौरान कौन-सा संज्ञानात्मक विकास होता है ?
  103. प्रश्न- मध्य वयस्कता में किस भाव का सबसे अधिक ह्रास होता है ?
  104. प्रश्न- मध्यवयस्कता में व्यक्ति की बुद्धि का क्या होता है?
  105. प्रश्न- मध्य प्रौढ़ावस्था को आप किस प्रकार से परिभाषित करेंगे?
  106. प्रश्न- प्रौढ़ावस्था के मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष के आधार पर दी गई अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।
  107. प्रश्न- मध्यावस्था की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- क्या मध्य वयस्कता के दौरान मानसिक क्षमता कम हो जाती है ?
  109. प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था (50-60) वर्ष में मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक समायोजन पर संक्षेप में प्रकाश डालिये।
  110. प्रश्न- उत्तर व्यस्कावस्था में कौन-कौन से परिवर्तन होते हैं तथा इन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप कौन-कौन सी रुकावटें आती हैं?
  111. प्रश्न- पूर्व प्रौढ़ावस्था की प्रमुख विशेषताओं के बारे में लिखिये ।
  112. प्रश्न- वृद्धावस्था में नाड़ी सम्बन्धी योग्यता, मानसिक योग्यता एवं रुचियों के विभिन्न परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
  113. प्रश्न- सेवा निवृत्ति के लिए योजना बनाना क्यों आवश्यक है ? इसके परिणामों की चर्चा कीजिए।
  114. प्रश्न- वृद्धावस्था की विशेषताएँ लिखिए।
  115. प्रश्न- वृद्धावस्था से क्या आशय है ? संक्षेप में लिखिए।
  116. प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था (50-60 वर्ष) में हृदय रोग की समस्याओं का विवेचन कीजिए।
  117. प्रश्न- वृद्धावस्था में समायोजन को प्रभावित करने वाले कारकों को विस्तार से समझाइए ।
  118. प्रश्न- उत्तर वयस्कावस्था में स्वास्थ्य पर टिप्पणी लिखिए।
  119. प्रश्न- स्वास्थ्य के सामान्य नियम बताइये ।
  120. प्रश्न- रक्तचाप' पर टिप्पणी लिखिए।
  121. प्रश्न- आत्म अवधारणा की विशेषताएँ क्या हैं ?
  122. प्रश्न- उत्तर प्रौढ़ावस्था के कुशल-क्षेम पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  123. प्रश्न- संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  124. प्रश्न- जीवन प्रत्याशा से आप क्या समझते हैं ?
  125. प्रश्न- अन्तरपीढ़ी सम्बन्ध क्या है?
  126. प्रश्न- वृद्धावस्था में रचनात्मक समायोजन पर टिप्पणी लिखिए।
  127. प्रश्न- अन्तर पीढी सम्बन्धों में तनाव के कारण बताओ।

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